सोमवार, 8 जुलाई 2019

तुम्हारी यादें

छोड़ तन्हा नहीं जाती हैं तुम्हारी यादें,
रात दिन यार सताती हैं तुम्हारी यादें। 
लटका रहता है तेरी याद का झूला हरदम,
मुझको दिन-रात झुलाती हैं तुम्हारी यादें।
नींद से अब तो मुलाक़ात नहीं होती है,
शाम से आके जगाती हैं तुम्हारी यादें।
बीते लम्हात चले आते हैं बादल बनकर,
दिल के आंगन को भिगाती हैं तुम्हारी यादें।
साज बजता है तेरी याद का हर पल यारा,
गीत माज़ी के सुनाती हैं तुम्हारी यादें।
तेरी यादों से कहीं दूर न जाना है मुझे,
सच कहूँ मुझको सुहाती हैं तुम्हारी यादें।
साथ तेरे जो कभी ख्वाब बुने थे मैंने,
उन्हीं ख्वाबों को दिखाती हैं तुम्हारी यादें।
जब तेरा ग़म मेरी आँखों में है लाता आंसू, 
घेरकर मुझको हँसाती हैं तुम्हारी यादें।
भूल जाता हूँ तेरी याद में अक्सर खुद को,
मुझको मुझसे ही चुराती हैं तुम्हारी यादें।

सोमवार, 24 जून 2019

हमारे मुल्क के बच्चों की किस्मत

बहाने के लिए कुछ अश्क आंखों में रुका है क्या,
बताओ तुम बचाने के लिए कुछ भी बचा है क्या।
कभी सूरत,कभी गोरख,मुज़फ़्फ़रपूर होता है,
हमारे मुल्क के बच्चों की किस्मत में लिखा है क्या।
घटा है हादसा जब-जब,खुलें हैं वादों के दफ्तर,
कोई वादा गए सालों में पूरा भी हुआ है क्या।
दरिंदों से नहीं महफूज़ मेरी फूल सी बच्ची,
हिफाज़त के लिए उसकी हुकूमत ने किया है क्या।
वकालत कर रहा था सिर्फ दो बच्चों की जो कल तक,
मुज़फ़्फ़पूर के माँ-बाप से जाकर मिला है क्या।
किसी भी हादसा को रोकना मुमकिन नहीं होता,
हमारे रहबरों ने मुल्क को आखिर दिया है क्या।
हमारे मुल्क का क़ायद ज़माने में क़वी है "राज",
किसी के ग़म में उसकी आंख में आँसू दिखा है क्या।

शनिवार, 1 जून 2019

हौसला

हौसला जिसका कम नहीं होता,
हार का उसको ग़म नहीं होता।
जो डराता है सारी दुनिया को,
अस्ल में उसमें दम नहीं होता।
दिल की दुनिया तबाह करता है,
लफ्ज़ माना के बम नहीं होता।
कोशिशें कामयाब होती नहीं,
उसका जबतक करम नहीं होता।
खून जायज़ हो जिसमें इन्सां का,
वह यक़ीनन धरम नहीं होता।
हक़ की आवाज़ जो उठाता है,
ज़ेर उसका अलम नहीं होता।
कोई हैवान है तो बात अलग ,
आदमी बेशरम नहीं होता।
मैं हमेशा ही तन्हा होता है,
तन्हा हरगिज़ भी हम नहीं होता।
हर अमल का हिसाब देना है,
मौत पर सब ख़तम नहीं होता।

शनिवार, 18 मई 2019

चीखती तख्तियाँ

बीच रिश्तों के बस तल्खियाँ रह गईं,
जाल बुनती हुई मकड़ियाँ रह गईं।
हाथ फैलाए बच्चे अभी दिख रहे,
शहर में आज भी झुग्गियाँ रह गईं।
यूँ तरक़्क़ी दिखाई तो देती नहीं,
हाँ बजाने को कुछ डफलियाँ रह गईं।
बारी-बारी से मुर्ग़े सभी कट गए,
बनके अनजान सब मुर्गियाँ रह गईं।
कोई बकरों की हड्डी चबा भी गया,
मैं मैं करती हुई बकरियाँ रह गईं।
चुन के गुलशन से माली कली ले गया,
फूल को ढूंढती तितलियां रह गईं।
जिनके सर को मयस्सर नहीं एक छत,
उनके हिस्से में सब बिजलियां रह गईं।
हम सियासत के जाले में ऐसे फंसे,
भाई-चारा गया , बस्तियाँ रह गईं।
अब तरक़्क़ी की करता नहीं बात वो,
उसकी तक़रीर में धमकियाँ रह गईं।
मुल्क भर की हवा पुरतशद्दुद हुई,
गुल मोहब्बत की सब बत्तियाँ रह गईं।
पीकर ज़हरीली दारू कई मर गए,
फिर भी चलती हुई भट्टियाँ रह गईं।
ये ज़माने का दस्तूर भी है अज़ब,
हाशिये पर कई हस्तियाँ रह गईं।
जांच में खर्च इतना हुआ के मरीज,
बिन दवा मर गया,पर्चियाँ रह गईं।
राह इंसाफ की है बहुत ही कठिन,
अर्ज़ीवाला गया अर्ज़ियाँ रह गईं।
खुदग़रज़ लोग आकर गरज़ ले गए,
घर के आंगन बस अर्थियाँ रह गई।
बेटे माँ-बाप की खैर लेते नहीं,
घर की दहलीज़ पर बेटियाँ रह गईं।
अपने रहबर से उसने किया था सवाल,
जिस्म पर उसके बस पट्टियाँ रह गईं।
आज के दौर में लोग खामोश हैं,
चीखती-चाखती तख्तियाँ रह गईं।
बारी-बारी से सब रँग गुम हो गए,
ज़र्द रँग की थीं जो पत्तियाँ रह गईं।
छोड़ आए हैं बचपन वहीं माँ के पास,
"राज"खामोश  सब मस्तियाँ रह गईं।

सोमवार, 29 अप्रैल 2019

क्या पता












कौन जीता कौन हारा क्या पता,
किसने कैसे दिन गुज़ारा क्या पता।
जब तलक गोता लगाया जाए ना,
है समंदर कितना खारा क्या पता।
क़त्ले-पहलू सबने देखा है मगर,
किसने पहलू को है मारा क्या पता।
उनको है सबकुछ खबर,लेकिन नजीब
है कहाँ जाने बेचारा क्या पता।
कितना मुश्किल है यहां होना कफील,
कौन-सी लग जाए धारा क्या पता।
आज सबकी आसिफा खतरे में है,
टूट जाये किसका तारा क्या पता।
फ़र्ज़ पर मोहसिन मियाँ सस्पेंड हैं,
कर दिया किसने किनारा क्या पता।
बारी-बारी हो गए मुल्ज़िम बरी,
इसमें है किसका इशारा क्या पता।
नौकरी हासिल नहीं जिनको हुई,
कौन है उनका सहारा क्या पता।
*नोटबन्दी में लुटे परिवार का,
हो रहा कैसे गुज़ारा क्या पता।
खौफ का धंधा नहीं है कामयाब,
कब बदल जाएगा नारा क्या पता।
आंख में आँसू नहीं तो क्या हुआ,
है वो रोया कितना सारा क्या पता।
बेखबर बैठे हैं घर में हम तो "राज"
है कहाँ नफरत का पारा क्या पता।
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★ ताकि सनद रहे - नोटबन्दी में लुटे परिवार का अर्थ आप यहां काला धन रखने वालों से न लगाएँ, क्योंकि काला धन वाला कोई न पकड़ा गया न क़तार में दिखा। इस शेर में उस ग़रीब परिवार की तरफ इशारा है,जिसने क़तार में अपने प्रियजनों,घर के मुखिया को खो दिया और उनको सरकार से एक पैसे का मुआवज़ा नहीं मिला। याद रहे क़तारों में मरने वाले उद्योगपति,पूंजीपति,बड़े सरकारी अधिकारी, मंत्री, नेता आदि नहीं थे,आम आदमी थे,जो अपनी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए क़तार में लगे थे। यह वजाहत इसलिए कि जब नोटबन्दी का इतिहास लिखा जाए तो कुछ ग़लत न लिख जाए।

शुक्रवार, 22 फ़रवरी 2019

मेरे महबूब तू खफा तो है

मेरे महबूब तू खफा तो है,
प्यार में अब भी कुछ रखा तो है।
प्यार हर पल तुझे बुलाएगा,
दिल ये तुझको न भूल पाएगा,
आजमा ले मुझे अगर चाहे,
मेरे दिल में सनम वफा तो है,
मेरे महबूब तू खफा तो है,
प्यार में अब भी कुछ रखा तो है।
जिंदगी में तेरी कमी दिलबर,
तू न समझे ये और बात है पर,
मुझको तुझसे सनम मोहब्बत है,
मैंने सौ बार ये कहा तो है,
मेरे महबूब तू खफा तू है,
प्यार में अब भी कुछ रखा तो है।
सरे-महफिल भी तेरा नाम लूं मैं,
तू जो चाहे तो हाथ थाम लूं मैं,
इस जमाने से छीन लूं तुझको,
मुझ में इतना कुछ हौसला तो है,
मेरे महबूब तू खफा तू है,
प्यार में अब भी कुछ रखा तो है।
बारहां तेरा छत पे आ जाना,
और नजरों का मिल के झुक जाना,
कैसे कह दूं के खत्म है रिश्ता,
अब भी बाकी वो सिलसिला तो है,
मेरे महबूब तू खफा तू है,
प्यार में अभी कुछ रखा तो है।

शुक्रवार, 20 अप्रैल 2018

तेरी यादों के पन्ने


मैं यादों के समंदर में ,
जो डूबा हूँ तो ज़िंदा हूँ।
तुम्हारे ज़िक्र की तस्बीह,
पढ़ता हूँ तो ज़िंदा हूँ।
मैं अक्सर रात में तन्हा,
तेरी तस्वीर तकता हूँ,
कभी तुमने लिखे थे जो,
वही तहरीर तकता हूँ,
तुम्हारे बाद ये थोड़े, 
सहारे हैं तो ज़िंदा हूँ।
तुम्हारे बाद भी जाने,
है रिश्ता क्या तेरे घर से,
नहीं हो तुम मगर फिर भी,
गुज़रता हूँ तेरे दर से,
तेरी गलियों,तेरे कूचे ,
में चलता हूँ तो ज़िंदा हूँ।
कभी मुझको हंसाते हैं,
कभी मुझको रुलाते हैं,
तुम्हारे साथ गुज़रे पल,
बहुत ही याद आते हैं,
तेरी यादों के पन्ने जो,
पलटता हूँ तो ज़िंदा हूँ।